कभी भर गया, कभी ख़ाली रहा - सर्वजीत Kabhi Bhar Gaya, Kabhi Khali Raha - Hindi Poem by Sarvajeet D Chandra
कभी भर गया, कभी ख़ाली रहा - सर्वजीत
कभी ख़फ़ा, कभी ख़ुशगवार हूँ
कभी ठीक हूँ, कभी ख़राब हूँ
कभी मसरूफ़, कभी हूँ मुंतज़िर
तेरा ढलता उभरता ख़ुमार है
कभी थम गया, कभी चढ़ गया
कभी याद किया, कभी भुला दिया
कभी बुझा हूँ, कभी जला हुआ
कभी सहर हूँ, कभी साँझ सा
तेरा वजूद, जैसे कोई सराब है
कभी मिल गया, कभी बिछड़ गया
कभी आफ़ताब हूँ, अन्धकार हूँ
कभी वीरान हूँ, कभी आबाद सा
कभी पाया तुम्हें, कभी खो दिया
तेरा दीदार एक भिक्षा पात्र है
कभी भर गया, कभी ख़ाली रहा
कभी ज़र्रा हूँ, कभी कायनात हूँ
कभी सबा हूँ, कभी तूफ़ान सा
कभी जिस्मानी, कभी रूहानी
तेरा फ़ितूर, एक फ़क़ीर है
कभी रुक गया, कभी चल पड़ा
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