कितने वादे - सर्वजीत
जितने वादे किये थे तुमसे
उनसे ज्यादा तोड़ दिए मैंने
जो दीप कभी जले ही नहीं
आंधी में झोंक दिए मैंने
जितने सपने बुन सकता था
उनसे बड़ा मायाजाल रचा
जो घर कभी बसे ही नहीं
तेरे आने पर छोड़ दिए मैंने
तेरी कल्पना से कहीं ज़्यादा
पात्रों का निर्वाह किया मैंने
जो संकल्प किए ही नहीं
अग्नि के आगे तोड़ दिए मैंने
कई जीवन के तुम, हमसफ़र
अथाह स्नेह के दावे किए मैंने
जो दोस्ती कभी की ही नहीं
मँझधार में हाथ छोड़ दिए मैंने
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