खिलौना ही रहा- सर्वजीत
जब तक तुमने खेला नहीं
तोड़ा नहीं, फिर जोड़ा नहीं
चूमा, हाथों को मोड़ा नहीं
कस के गले लगाया नहीं
तब तक मैं खिलौना ही रहा
दिलबर बन पाया नहीं
जब तक बाँहों में थामा नहीं
पलंग पर बिछाया नहीं
प्यार से बालों को नोचा नहीं
सपनों में बसाया नहीं
तब तक मैं खिलौना ही रहा
हमदम बन पाया नहीं
जब तक तुम्हारी कविता में
राज कुँवर बन कर आया नहीं
तेरी आरज़ू को आँखों में बसा
दूर ही रहा, क़रीब आया नहीं
तब तक मैं खिलौना ही रहा
मीत बन पाया नहीं
जब तक तुमने दर्द अपना
गीत अपना मुझे बनाया नहीं
अपनी यादें, अपनी बातें
अपने आँचल में छुपाया नहीं
तब तक मैं खिलौना ही रहा
हमसफ़र बन पाया नहीं
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