रावी - सर्वजीत . Ravee- a Poem by Sarvajeet D Chandra

 

रावी - सर्वजीत


ज़िंदगी गुजर सी गयी है 

तुम्हारे इश्क़ को समझने में

मौसम बीतते रहे  

उम्र ढलती रही

तुम सुलझती रही 

तुम आसान होती रही 

साथ  होकर सदियों से भी

राज़ थी पहले, कुछ खुलने लगी 




रातें गुजरती रहीं 

चिराग़ जल के बुझते रहे 

मसरूफ़ ज़िंदगी में उलझकर भी 

तुमसे बेख़बर हम रह ना सके

रुखसत हुई तुम जब भी कभी 

शफ़क की ख़ामोशी में ढूँढते रहे 

मुख़्तलिफ़ मिज़ाज थे फिर भी 

रास्ते तुम्हारी ओर मुड़ते ही रहे




तुम्हारे चहचहाने  के शोर में गुम

ख़ामोश सी दास्ताँ को सुनते रहे 

तुमसे रुसवा हो भटके दर बदर

दुआ में तुमको कभी भुला ना सके 

दो घड़ी का खेल नहीं है मोहब्बत

गुम है राही, भटका क़ाफ़िला है

सराब में ढूँढते नशेमन की कहानी है 

अफ़सानों में छिपी, सितारों की रानी है 


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