लॉकडाउन नगरिया-सर्वजीत शोर में डूबा हुआ शहर सन्नाटे से झूझ रहा है गाड़ियों से रौंदा रास्ता इंसानो को ढूँढ रहा है सारी रात दौड़ती मुंबई नज़रबंद सिमटी अकेली है मर्सेडीज़ में दुकान छानते को मिल ना पायी एक मैगी है पटरियों पर उमड़ती भीड़ अब व्हाट्सएप पर बैठी है पोछा लगाते मैनेजर साहब महीने भर ना आयी महरी है चार दीवारों में क़ैद बचपन खेल ना सका,बुझा सा है गाँव से दूर,बेबस मज़दूर सहमा,लाचार,भूखा है लिफ़्ट में कोई दिख जाए तो लगता है आबाद बस्ती है मौत से डरी इमारतों में जीवन की आस,दबी सी है माया में मशगूल शहर सदियों में फ़ुर्सत से बैठा है शक की नज़र,या दोस्ती से पड़ोसी में इंसान को देखा है पता किसे था इस शहर में चिड़िया भी चहचहातीं हैं भूले बिसरे गीत गाते आवाज़ किसी की आती है माँ के हाथ के खाने की स्मृति ज़हन में आयी है छह फुट के फ़ासले ने कुछ नज़दीकियाँ बढ़ाई हैं बचपन कॉलेज के दोस्तों की याद एकदम से आती है नये मिज़ाज की यह दुनिया कुछ दूरियाँ मिटाती है
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