Hans Sarikha Man- Poem by Sarvajeet हंस सरीखा मन-सर्वजीत हर वक्त मेरी जिंदगी में तुम जब कभी भी आये उजड़े हुए मंदिर में दीप जलते जायें घटा को जब भूला सावन पतझड़ नें तब गीत गाये हंस सरीखा मन तुम्हारी आस में उड़ता जाये खाली कुआँ , बीत रहा जीवन ठहरा पानी, लहर न उठने पाये जहरीली घास, बंजर बनती जमीं हरे खेतों के स्वप्न देखती जाए पीछा करता जाए पागलपन बारिश नहीं थमने को आये हंस सरीखा मन तुम्हारी चाह में उड़ता जाये पहाड़ी गाँव सी बसी , जिन्दगी जंगल से उलझ, रोशनी भटक जाये सुनसान वादियों में जब कभी अकेली शाम ढलने को आये तुम्हारी भीनी सी मुस्कान पर दिल खिलखिलाकर हँसता जाए हंस सरीखा मन तुम्हारी याद में उड़ता जाये पास चाहें तुम हो जितनी तुम्हें ढूढँता ही रह जाए
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